Wednesday, October 26, 2011

दिवाली

हर तरफ जगमगाते सितारों सा नजारा है,
लगता है किसी ने चाँद की टोली को जमी पे उतारा है.
दिए की लपलपाती बातियो में मस्ती का शोर है,
ढलती हुयी रात में भी कर रखा इन्होने भोर है.
कुछ पटाखे की ठहाको  को करीब से सुन रहा हु मैं,
ऐसे ही हर रात के सपने बुन रहा हु मैं.
एक दिन के लिए ही सही अँधेरा तो दूर है,
हर शाम की सुबह होती है, सुना था यही दस्तूर है.
ख़ुशी की इस रात को सहेज के रख लू जरा,
चमकती हुयी इस रात का स्वाद तो चख लू जरा,
चमक कुछ यु बिखरी है की कह सकता नहीं रात काली है,
पूरे एक साल बाद आती यह खूबसूरत दिवाली है.

Thursday, May 5, 2011

कसक

मुझे मालूम था के, तू बहुत दूर है मुझसे,
न जाने फिर भी कैसे ये, खता जो हो गयी मुझसे,

फिसल के दिल की बाँहों से, छलक  पड़ा मेरे मुह से ही,
इश्क हो गया मुझको, कमबख्त वो भी तुझसे ही,


हकीकत मैं समझता हूँ, फसाना बन न पायेगा,
कसक रह जायेगी दिल में और मेरा दिल यूं ही गायेगा.

Monday, May 2, 2011

इश्क

माशूक के लब पे, माशूका का नाम रहने दो.
जेहन में याद उसकी और हाथ में जाम रहने दो.

हवाओ में खालिस है आज, इसे तुम यूहीं  बहने दो.
फिजा मुस्कुरा रही हम पे,जरा इन्हें खुलके हसने दो.

न आये जब तक जालिम वो, हसीं ये शाम रहने दो.
देखना उसकी राहें बस,  हमारा काम रहने दो.

आएगी कभी न वो, जानते हम भी हैं लेकिन,
हमारे इश्क का कमबख्त यही अंजाम रहने दो.

Friday, April 29, 2011

जिन्दगी

मयस्सर थी जिन्हें दो जून की रोटी नहीं कभी,
आज वही दावत-ए-मुर्ग छोड़ जाते हैं.

तड़पा  करते थे हुस्न के इक दीदार को कभी,
आज अप्सराओ से भी मुह मोड़ जाते हैं.

चाहत थी उन्हें  नर्म आगोश की कभी,
आज दरख़्त पे भी चैन से सो जाते हैं.

खुद को खुद से खुद के लिए करना पड़े अलग,
जिन्दगी में कभी कभी ऐसे भी मोड़ आते हैं.

मेरी ये पहली कविता

मेरी  ये पहली कविता कुछ याद दिलाती है,
बारिश में भींगी भींगी जैसे तू आती है.

मोहक सा चेहरा तेरा कुछ कह कर जाता  है,
सूखे बंजर में भी यह बदरी  सा छाता  है.

तेरे पायल की रुनझुन, संगीत सुनाती है,
झलक तेरी इक देखू तो  मदहोशी छाती है.

तेरे नयनो की भाषा को पढना चाहूं मैं,
पास जो आये मेरे तो कुछ कहना चाहूं मैं.

सपना था प्यारा सा ये अब जान गया हूँ मैं,
अपनी इस वीरानी को पहचान गया हूँ मैं.