Wednesday, October 26, 2011

दिवाली

हर तरफ जगमगाते सितारों सा नजारा है,
लगता है किसी ने चाँद की टोली को जमी पे उतारा है.
दिए की लपलपाती बातियो में मस्ती का शोर है,
ढलती हुयी रात में भी कर रखा इन्होने भोर है.
कुछ पटाखे की ठहाको  को करीब से सुन रहा हु मैं,
ऐसे ही हर रात के सपने बुन रहा हु मैं.
एक दिन के लिए ही सही अँधेरा तो दूर है,
हर शाम की सुबह होती है, सुना था यही दस्तूर है.
ख़ुशी की इस रात को सहेज के रख लू जरा,
चमकती हुयी इस रात का स्वाद तो चख लू जरा,
चमक कुछ यु बिखरी है की कह सकता नहीं रात काली है,
पूरे एक साल बाद आती यह खूबसूरत दिवाली है.