Wednesday, January 25, 2017

मुझे पता है के मैंने बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं
क्या करूं तुम्हारे सिवा मुझे कुछ और दिखा नहीं!

आज न जाने क्यों फिर से ज़माने को बताना है
तुम्हारे लिए अपने एहसास को फिर से जाताना है!

तुम्हारे चमकते चेहरे में जीवन का हर आयाम दिखता है
मेरा हर जज्बात हर वक़्त बस उसपे हीं लिखता हैं!

तुम्हारी आँखे बोलती हैं और मैं बस सुनता हूँ
टकटकी लगा के बस रोज नए सपने बनता हूँ!

तुम्हारे संग होने की शुरुआत आज ही तो हुयी थी
मेरी तक़दीर बनने  की शुरुआत आज ही तो हुयी थी!

तुम्हारे आने से फर्क मेरी ज़िन्दगी में कुछ यूं आया है
इर्द गिर्द मेरी, बस तुम्हारी तिश्नगी का साया है!

बस यूं ही करम बनाये रखना अपनी मुहब्बत का मुझपे
मेरे एहसास का हर एक कतरा  बस मरता है तुझपे!

सोफी का जीत
२६ जनवरी २०१७

Sunday, April 12, 2015

MY VISION: लगता हीं नहीं कि तुम्हे जाने हुए इक साल हुआ है !!!...

MY VISION: लगता हीं नहीं कि तुम्हे जाने हुए इक साल हुआ है !!!...: तुम्हारी झिलमिलाती आँखों में डूब के ये हाल हुआ है, लगता हीं नहीं कि तुम्हे जाने हुए इक साल हुआ है !!! शोख़ी तुम्हारी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रह...

लगता हीं नहीं कि तुम्हे जाने हुए इक साल हुआ है !!!

तुम्हारी झिलमिलाती आँखों में डूब के ये हाल हुआ है,
लगता हीं नहीं कि तुम्हे जाने हुए इक साल हुआ है !!!

शोख़ी तुम्हारी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है,
शुरूर तुम्हारे हँसी की मुझपे चढ़ती जा रही है!!!

तुम्हारे जिंदगी में आने से पता चला के प्यार क्या होता है,
तुम्हें गले लगाने से पता चला के प्यार क्या होता है!!!

न होती तुम तो ज़िंदगी यु खूबसूरत न होती,
मेरे लिए तो कोई अजंता की मूरत न होती!!!

तुम नायाब हो ये तो सब जानते हैं,
तुम लाज़वाब हो ये भी सब मानते हैं!!!

पर न देखी होगी किसी ने ये जलपरी सी अदा,
जिसे देख के मैं यूँ खुश होता हूँ सदा!!!

तुम्हारी खनकती हुई हँसी को कैद करना चाहता हूँ,
तुम्हारी पलकों के साये में ताउम्र रहना चाहता हूँ!!!

दूरी लम्बी हैं, हम हमेशा साथ चलेंगे,
एक दुसरे के हाथों में डाले हाथ चलेंगे!!!

गुज़ारिश है तुमसे यूँ हीं मुस्कुराती रहो,
मुझपे नूर अपनी अदा का लुटाती रहो!!!

जो आयी हो तुम मेरी जिंदगी में न जाने के लिए,
तो ऐ मेरी हमदम इसे हर पल यू ही सजाती रहो!!!

लगती दिवाली सी अब मेरी हर एक रात है,
क्युकि  जीत तो हमेशा सोफ़िया के साथ है!!!


Thursday, February 13, 2014

तेरा अंदाज़

मेरी ज़िंदगी के हर ख़ूबसूरत सुबह का राज मुझे पसंद है,
तेरी इन आँखों के झिलमिलाने का अंदाज मुझे पसंद है।

जब से सुना है तेरी खनकती हुयी आवाज़ को मैंने,
न जाने क्यूँ संगीत का हर साज़ मुझे पसंद है।

तेरी हँसी के पीछे खिचा  हुआ न जाने कहाँ निकल आया,
याद नहीं किस शाम को चला था अब तो सुबह निकल आया,

यकीन करो मेरी बढ़ी हुयी धड़कनो पे तुम ज़रा,
तुम्हारी बेपरवाह हँसी से निकलती हुयी आवाज़ मुझे पसंद है।

मुद्दतें लग जातीं हैं वक़्त कि तन्हाई से निकलने में,
मगर मेरे यू ही खुश होने का आग़ाज़ मुझे पसंद है।

यकीनन परी बन के आयी हो मेरी जिंदगी में तुम,
मगर इसे राज़ ही रखने का तुम्हारा अलग अंदाज़ मुझे पसंद है।


Thursday, February 6, 2014

काश कि मैं

काश कि मैं तेरे जुल्फों के बीच का इक लट होता,
तेरे दामन से लिपटे हुए तेरे साथ बदल रहा करवट होता!

अनजाने ही तेरे चेहरे के करीब आता हवा के इक झोके से,
तेरी धड़कन को सुनता और महसूस करता थोड़े धोखे से!

तू कभी कभी जो उँगलियाँ फिरा लेती मेरी ओर अनजाने में,
एक ठंडी बयार सी बहने लगती मेरे तसव्वुर के वीराने में!

तेरी खनखनाती  हॅसी को सुनता मैं  इतने पास से,
के जज्बात में भी हलचल होती इस मीठे एहसास से!

तेरे हुस्न का सुरूर है या तेरे मासूमियत की असर,
के इंसान से लट  बन जाने कि चाहत होने लगी अक्सर!

खैर कभी जो अकेले बैठो तो लटों से यह पूछना ज़रूर,
फिर जानोगी के इन जुल्फों के लटों को किस बात का है  गुरूर!







Friday, August 16, 2013

जश्न आजादी का

बीती रात मेरे सपने में बापू ने आके बोला,
आज स्वतंत्रता दिवस है इसे मनाओगे  नहीं ?
आजादी के ६६ साल हो गए, कुछ हाल अपने  देश का बताओगे नहीं ?

मैं पड़ गया गहरी सोच में कि  बोलू मैं  कैसे ?
यहाँ की आजादी का भेद खोलू मैं कैसे ?

मेरी सोच में आज का आज़ाद भारत खड़ा था ,
जो न तो उन्मुक्त है और न ही आज़ाद ,
धर्म, मजहब और स्वार्थ के लिए लड़ रहे हैं इतनो सालों के भी बाद!

कहने को तो हम बड़ी तेजी से विकास की सीढियाँ चढ़ रहे हैं,
पर सच तो यह है की आज भी गरीबी, अशिक्षा और भ्रष्ट तंत्र से लड़ रहे हैं !

कल हम मजबूर थे क्युकि गुलाम थे कुछ बाहर के लोगों से,
पर आज भी हम ग़ुलाम हैं अपनी दकियानूसी सोच और स्वार्थ के रोगों से !

इस ग़ुलामी की बेड़ियाँ हमें खुद ही तोड़नी होंगी,
सच्ची आजादी का जश्न मनाने के लिए सोच मोड़नी होंगी !

मेरी चुप्पी को समझ के बोले बापू कि कुछ नहीं मिलेगा इस ख़ामोशी से,
बाहर निकलो जरा विरासत में मिली हुई आज़ादी की मदहोशी से !

जश्न मनाने के लिए अभी काफी कुछ करना बांकी है,
बाहर के शत्रु भाग गए, अन्दर का मरना बांकी है !

जाते जाते बोले बापू-देर से ही सही मगर यह होगा जरूर,
क्युकि रात कितनी भी लम्बी हो, सुबह होती है जरूर !


Wednesday, August 22, 2012

पांचवी सालगिरह इंडी ब्लोग्गेर्स की

मुंबई की वो रात कुछ अनोखी थी,
यहाँ के हवाओ में फैली हुयी शोखी थी।

ताज के महल में नायाब लेखकों का था अनूठा संगम,
बाहर बैंड स्टैंड के किनारे हो रही थी बारिश झम झम।

इंतज़ार हो रहा था भारत के दो अनमोल नगीनो का,
विकास और राजीव दिल लूटने वाले थे यहाँ के हसीनो का।

शाम शुरू हुयी पूनम की हँसी और कुछ प्यारी बातों से,
फिर दो "शूरमाओं" और  नए लेखको की मुलाकातों से।

थोड़ी देर के लिए छिड चुका बंद महल में  द्वन्द था,
पुरष्कार पाने वाला हर एक ब्लॉगर अक्लमंद था।

हर किसी के मन में चल रही एक दुविधा थी,
इक तरफ लजीज खाना तो दूसरी ओर तकनीक की सुविधा थी।

नोकिया के अभूतपूर्व  चमत्कार दिखने शुरू हो चुके थे,
एप्स  की गलियों से इंडी ब्लोग्गेर्स के चेहरे खिलने शुरू हो चुके थे।

विकास का कैटवाक किसी मॉडल से कम कहाँ,
पैर रखे उसने यहाँ तो हाथ उसके जाए वहाँ।

राजीव के चुटकुलों से सारा माहौल रंगीन था,
चुटकुले पे दिल खोल के न हँसना जुर्म वहाँ संगीन था।

यूं  हीं रात बढती गयी,बात बढ़ती गयी,
हमारे आपस की मुलाक़ात बढती गयी।

आखिर दौर ख़तम हुआ कुछ लज़ीज़ खाने के साथ,
मिलके केक काटने  और  फोटो  खिचाने  के साथ।

पांचवी सालगिरह इंडी ब्लोग्गेर्स की कुछ ख़ास थी,
ख़ूबियाँ नोकिया के एप्स की आयी हमे रास थी।