Thursday, February 6, 2014

काश कि मैं

काश कि मैं तेरे जुल्फों के बीच का इक लट होता,
तेरे दामन से लिपटे हुए तेरे साथ बदल रहा करवट होता!

अनजाने ही तेरे चेहरे के करीब आता हवा के इक झोके से,
तेरी धड़कन को सुनता और महसूस करता थोड़े धोखे से!

तू कभी कभी जो उँगलियाँ फिरा लेती मेरी ओर अनजाने में,
एक ठंडी बयार सी बहने लगती मेरे तसव्वुर के वीराने में!

तेरी खनखनाती  हॅसी को सुनता मैं  इतने पास से,
के जज्बात में भी हलचल होती इस मीठे एहसास से!

तेरे हुस्न का सुरूर है या तेरे मासूमियत की असर,
के इंसान से लट  बन जाने कि चाहत होने लगी अक्सर!

खैर कभी जो अकेले बैठो तो लटों से यह पूछना ज़रूर,
फिर जानोगी के इन जुल्फों के लटों को किस बात का है  गुरूर!







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