क्या हाल होता होगा बेचारे उन किसानों का ,
प्रकृति ने कही गला तो नहीं घोट दिया उनके अरमानो का।
बूंदे कुछ गिरी और धरती के सीने से निकली एक आह,
सोचा के अब आसमान से होगी जल धारा प्रवाह।
सूखी पत्तियों के झुलसे चेहरे पर दिखी मुस्कान की इक झलक
तो किसानों ने भी उठा दिए आसमान की ओर अपने पलक।
उनके आँगन में तितलियों का बनने लगा था डेरा,
नन्हे बच्चों ने भी किलकारियों की धुन को छेड़ा।
पर आने वाले कल के काल को कौन जान पाया है,
धूप, छांव,सूखा,बारिश तो सब ऊपर वाले की माया है।
चंद दिनों की लुका छिपी थी बारिश की धरती से,
जल्द ही ख़त्म हो गया मेलजोल पानी का परती से।
फिर से उदास हो चुका चेहरा है बच्चों और नौजवानों का,
सोचता हूँ के क्या हाल हो रहा होगा उन बेचारे किसानो का।
प्रकृति ने कही गला तो नहीं घोट दिया उनके अरमानो का।
बूंदे कुछ गिरी और धरती के सीने से निकली एक आह,
सोचा के अब आसमान से होगी जल धारा प्रवाह।
सूखी पत्तियों के झुलसे चेहरे पर दिखी मुस्कान की इक झलक
तो किसानों ने भी उठा दिए आसमान की ओर अपने पलक।
उनके आँगन में तितलियों का बनने लगा था डेरा,
नन्हे बच्चों ने भी किलकारियों की धुन को छेड़ा।
पर आने वाले कल के काल को कौन जान पाया है,
धूप, छांव,सूखा,बारिश तो सब ऊपर वाले की माया है।
चंद दिनों की लुका छिपी थी बारिश की धरती से,
जल्द ही ख़त्म हो गया मेलजोल पानी का परती से।
फिर से उदास हो चुका चेहरा है बच्चों और नौजवानों का,
सोचता हूँ के क्या हाल हो रहा होगा उन बेचारे किसानो का।
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