बीती रात मेरे सपने में बापू ने आके बोला,
आज स्वतंत्रता दिवस है इसे मनाओगे नहीं ?
आजादी के ६६ साल हो गए, कुछ हाल अपने देश का बताओगे नहीं ?
मैं पड़ गया गहरी सोच में कि बोलू मैं कैसे ?
यहाँ की आजादी का भेद खोलू मैं कैसे ?
मेरी सोच में आज का आज़ाद भारत खड़ा था ,
जो न तो उन्मुक्त है और न ही आज़ाद ,
धर्म, मजहब और स्वार्थ के लिए लड़ रहे हैं इतनो सालों के भी बाद!
कहने को तो हम बड़ी तेजी से विकास की सीढियाँ चढ़ रहे हैं,
पर सच तो यह है की आज भी गरीबी, अशिक्षा और भ्रष्ट तंत्र से लड़ रहे हैं !
कल हम मजबूर थे क्युकि गुलाम थे कुछ बाहर के लोगों से,
पर आज भी हम ग़ुलाम हैं अपनी दकियानूसी सोच और स्वार्थ के रोगों से !
इस ग़ुलामी की बेड़ियाँ हमें खुद ही तोड़नी होंगी,
सच्ची आजादी का जश्न मनाने के लिए सोच मोड़नी होंगी !
मेरी चुप्पी को समझ के बोले बापू कि कुछ नहीं मिलेगा इस ख़ामोशी से,
बाहर निकलो जरा विरासत में मिली हुई आज़ादी की मदहोशी से !
जश्न मनाने के लिए अभी काफी कुछ करना बांकी है,
बाहर के शत्रु भाग गए, अन्दर का मरना बांकी है !
जाते जाते बोले बापू-देर से ही सही मगर यह होगा जरूर,
क्युकि रात कितनी भी लम्बी हो, सुबह होती है जरूर !
आज स्वतंत्रता दिवस है इसे मनाओगे नहीं ?
आजादी के ६६ साल हो गए, कुछ हाल अपने देश का बताओगे नहीं ?
मैं पड़ गया गहरी सोच में कि बोलू मैं कैसे ?
यहाँ की आजादी का भेद खोलू मैं कैसे ?
मेरी सोच में आज का आज़ाद भारत खड़ा था ,
जो न तो उन्मुक्त है और न ही आज़ाद ,
धर्म, मजहब और स्वार्थ के लिए लड़ रहे हैं इतनो सालों के भी बाद!
कहने को तो हम बड़ी तेजी से विकास की सीढियाँ चढ़ रहे हैं,
पर सच तो यह है की आज भी गरीबी, अशिक्षा और भ्रष्ट तंत्र से लड़ रहे हैं !
कल हम मजबूर थे क्युकि गुलाम थे कुछ बाहर के लोगों से,
पर आज भी हम ग़ुलाम हैं अपनी दकियानूसी सोच और स्वार्थ के रोगों से !
इस ग़ुलामी की बेड़ियाँ हमें खुद ही तोड़नी होंगी,
सच्ची आजादी का जश्न मनाने के लिए सोच मोड़नी होंगी !
मेरी चुप्पी को समझ के बोले बापू कि कुछ नहीं मिलेगा इस ख़ामोशी से,
बाहर निकलो जरा विरासत में मिली हुई आज़ादी की मदहोशी से !
जश्न मनाने के लिए अभी काफी कुछ करना बांकी है,
बाहर के शत्रु भाग गए, अन्दर का मरना बांकी है !
जाते जाते बोले बापू-देर से ही सही मगर यह होगा जरूर,
क्युकि रात कितनी भी लम्बी हो, सुबह होती है जरूर !